भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्या था नागपुर का योगदान? पढ़ें यहां..

Nagpur has also taken part in the movement of freedom
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्या था नागपुर का योगदान? पढ़ें यहां..
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्या था नागपुर का योगदान? पढ़ें यहां..

डिजिटल डेस्क, नागपुर। आजादी के आंदोलन में देश के हर कोने-कोने से क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। शहादत की सूची में नागपुर का नाम भी गर्व से लिया जाता है। 1857 के आंदोलन में अंग्रेजों द्वारा 4 क्रांतिकारियों को नागपुर के ऐतिहासिक जुम्मा गेट (गांधी गेट) पर फांसी पर लटका दिया गया था। इसके बावजूद यहां के क्रांतिकारी पीछे नहीं हटे। आंदोलन की ज्वाला दिन-ब-दिन धधकती गई। 17 वर्षीय शंकर महाले के साथ 5 क्रांतिकारियों को भी अंग्रेजों ने सूली पर चढ़ा दिया। प्रशासनिक रिकॉर्ड में 96 से अधिक शहीदों के नाम दर्ज है। जबकि इन क्रांतिकारियों को शहर के विभिन्न इलाकों में मौजूद अखाड़ों से शक्ति मिला करती थी। यह अखाड़े केवल शारीरिक वर्जिश का स्थान नहीं थे, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ गुप्त बैठकें कर यहीं से रणनीति तैयार की जाती थी। मध्य प्रांत बनने के बाद अंग्रेजों ने 16 कलेक्टरों समेत कुल 55 अधिकारियों की टीम द्वारा सत्ता को बरकरार रखने का प्रयास करते थे।

नागपुर के धरती पर अंग्रेजों के कदम 

वर्ष 1788 में जॉर्ज फॉर्स्टर नाम के दूत को अंग्रेजों ने नागपुर में भेजा था। यह पहला मौका था जब अधिकृत तौर पर किसी अंग्रेज ने नागरपुर की धरती पर कदम रखा था। मराठा व अंग्रेजों के युद्ध में भोसले शासकों की कमजोरी को पहचानते हुए अपना हित साधने के लिए भोसले के दरबार में जॉर्ज को दूत बनाकर भेजा गया था। लॉर्ड रिचर्ड वेलस्ली के गवर्नर जनरल बनने के बाद रघुजी भोसले के साथ समझौता करने के लिए वर्ष 1800 दूसरा अंग्रेज अफसर नागपुर में आया, उसका नाम था हेनरी कोलब्रुक।

अंग्रेजों से नागपुर का पहला युद्ध
वर्ष 1803 के अगस्त में भोसले और अंग्रेजों के बीच पहला युद्ध हुआ। यह लड़ाई करीब 5 माह तक छिटपूट ढंग से चलती रही। अंग्रेजों ने रघुजी भोसले के प्रदेश का बहुत बड़ा हिस्सा हथिया लिया था। अडगांव की लड़ाई निर्णायक रही। 17 दिसंबर 1803 को रघुजी के साथ देवगांव में समझौता हुआ। वर्धा से वर्हाड का क्षेत्र अंग्रेजों को मिला। माउंट स्टयूअर्ट एलफिन्स्टन को अंग्रेजों ने वकील के तौर पर नागपुर भेजा। इसके बाद एलफिन्स्टन के स्थान पर 1807 में रिचर्ड जेन्किन्स नियुक्त हुए। 22 मार्च 1816 को रघुजी के निधन के बाद भोसले राज का पतन हुआ।

सीताबर्डी व सक्करदरा बना था युद्ध मैदान
अप्पासाहेब के विद्रोह की आशंका के मद्देनजर जेन्किन्स ने  24 नवंबर 1817 को तेलंगखेडी स्कॉट के रेसिडेन्सी से सटे सीताबर्डी के 2 टेकड़ियों को कब्जे में लिया। भोसले की सेना सक्करदरा में थी। इसमें अरबी सैनिक अधिक थे। 26 नवंबर की शाम भोसले के सैनिकों ने सीताबर्डी पर हमला कर दिया। तोफों के हमलों में 2 अंग्रेज अधिकारी मारे गए थे। इसके बाद 6 जनवरी 1818 तक अंग्रेजों ने क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। काफी वर्षों तक चली अंग्रेजों की रणनीतियों ने अंतत: 13 मार्च 1854 को भोसले राज्य को भारत में विलीन करते हुए नागपुर प्रांत बना दिया। कमिश्नर मॅनसेल ने कार्यभार संभाला।

1857 आंदोलन में दहल उठा नागपुर
मेरठ में 10 मई 1857 को शुरू हुए आंदोलन की आग जून में नागपुर पहुंची। कामठी, टाकली व नागपुर सेना के घुडसवारों में मुस्लिम बहुतायात में थे। 13 जून को कमिश्नर प्लौडन के बंगले और सीताबर्डी पर हमला करने की योजना थी। डिप्टी कमिश्नर एलिस को इसकी गुप्त सूचना मिल चुकी थी। मिशन हाउस के पास मोतीबाग में 400 मुस्लिम हमले की तैयारी में थे, लेकिन योजना विफल हो गई। 14 जून को सेना ने षड़यंत्र के आरोप में गिरफ्तारियां शुरू की। इस समय इनायतुल्ला खान, बिलायत खान, नवाब कादर खान व दीदार खान को गिरफ्तार किया गया। 9 अगस्त 1857 को अंग्रेजों ने इन 4 क्रांतिकारियों को नागपुर के ऐतिहासिक जुम्मा गेट (गांधी गेट) पर फांसी पर लटका दिया। 9 क्रांतिकारियों को लंबी सजा मिली। इससे संपूर्ण विदर्भ दहल उठा।

55 अधिकारी संभालते थे नागपुर
2 नवंबर 1861 में मध्य प्रांत का निर्माण हुआ। इसकी राजधानी नागपुर को बनाया गया। सत्ता का केंद्र कोलकाता था। मध्य प्रांत पर नियंत्रण रखने के लिए चीफ कमिश्नर को जिम्मेदारी सौंपी गई। उनकी सहायता के लिए एक ज्युडीशियल कमिश्नर, 4 कमिश्नर एवं 16 जिलाधिकारी (डिप्टी कमिश्नर) की नियुक्तियां की गई थी। इनका काम प्रशासन के अलावा दिवाणी व फौजीदारी न्यायालय का संचालन करना होता था। दुय्यम न्यायिक अधिकारी के रूप में 15 असिस्टंट कमिश्नर और 18 एक्स्ट्रा असिस्टंट कमिश्नर ऐसे कुल 55 अधिकारियों की टीम नागपुर प्रांत पर राज करते थे। 1 जुलाई 1862 को नागपुर में लघुवाद न्यायालय स्थापित किया गया। सिविल कोड कानून लागू किया गया। प्रशासन में अनेक नए विभागों का निर्माण किया गया।

अखाड़े थे क्रांतिकारियों के अड्डे
नागपुर में आजादी के आंदोलन को लेकर अनेक गतिविधियां चलती थी। क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकें एवं अन्य गतिविधियों के लिए अखाड़ों का इस्तेमाल किया जाता था। युवा इन अखाड़ों में शारीरिक वर्जिश के बहाने एकजुट होकर कुस्ती लड़ते थे। जबकि अखाड़ों के पहलवानों के नेतृत्व में स्वाधीनता का महत्व समझाया जाता था। शहर में वैसे तो अनेक अखाड़े प्रसिद्ध है, लेकिन शिवराम गुरु का अखाड़ा, शिवसमर्थ सेवा मंडल, वाईकर वाडा, साळुबाई मोहिते वाडा आदि स्थानों पर सशस्त्र आंदोलनों की गुप्त बैठकें हुआ करती थी।

17 वर्ष के युवा मजदूर को मिली थी फांसी 
अंग्रेजों की सत्ता के खिलाफ जब करो या मरो का आह्वान किया गया तो नागपुरवासी भी इस आंदोलन में शामिल हुए। विरोध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों की गोलीबारी में दादाजी महाले शहीद हुए। इसके बाद उनके पुत्र 17 वर्षीय शंकर महाले ने क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित रखी। शंकर व उसके साथियों ने चिटणवीसपुरा पुलिस चौकी पर हमला किया। इसमें एक अंग्रेज पुलिस जवान मारा गया। पुलिस चौकी जलाकर अस्त्र लूट लिए गए। पश्चात अंग्रेजों ने शंकर समेत 13 क्रांतिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। इनमें से 5 युवाओं को नागपुर कारागृह में फांसी दी गई। आजादी के बाद राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज के सहकार्य से प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा 13 फरवरी 1962 को शहीद शंकर महाले की याद में महल के झंडा चौक में स्थापित प्रतिमा का अनावरण किया गया।

Created On :   14 Aug 2018 6:35 PM GMT

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