Jhulelal Jayanti 2024: सिंधी हिंदुओं के देवता हैं झूलेलाल, जानिए क्या है इस दिन का महत्व?

सिंधी हिंदुओं के देवता हैं झूलेलाल, जानिए क्या है इस दिन का महत्व?
  • सिंधी समुदाय के लोग झूलेलाल मंदिरों में जाते हैं
  • भगवान झूलेलाल को वरुण देव भी माना जाता है
  • चेटी चंड पर्व आज मंगलवार को मनाया जा रहा है

डिजिटल डेस्क, भोपाल। चेटी चंड (Cheti Chand) सिंधी समुदाय के लोगों के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। चैत्र माह के दौरान चंद्रमा के पहली बार दिखाई देने के कारण इस पर्व को चेटी चंड कहा जाता है। इस दिन को भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव (Jhulelal Jayanti) के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि, संत झूलेलाल को लाल साईं, उदेरो लाल, वरुण देव, दरियालाल और जिंदा पीर भी कहा जाता है। झूलेलाल जयंती पर सिंधी समुदाय के लोग झूलेलाल मंदिरों में जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

चूंकि, भगवान झूलेलाल को वरुण देव भी माना जाता है इसलिए सिंधी समाज लोग इस दिन जल की भी पूजा करते हैं। साथ ही इस दिन से सिंधी नववर्ष की शुरुआत भी मानी जाती है। इस वर्ष चेटी चंड पर्व 09 अप्रैल 2024 यानि कि आज मंगलवार को मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं इस दिन के महत्व के बारे में...

चेटी चंड मुहूर्त

तिथि आरंभ: 08 अप्रैल 2024, सोमवार रात 11 बजकर 50 मिनट से

तिथि समापन: 09 अप्रैल 2024, मंगलवार रात 08 बजकर 30 मिनट तक

पर्व से जुड़ी कथा

सिंधी मान्यताओं को अनुसार, संवत् 1007 में सिंध देश ठट्टा नगर में मिरखशाह नामक एक मुगल सम्राट ने हिंदू आदि धर्म के लोगों को जबरन इस्लाम स्वीकार करवाया था। उसके जुल्म लोगों पर बढ़ते ही गए तब एक दिन सभी महिला-पुरुष व बच्चे सिंधु नदी के पास इकट्ठा हुए। सभी ने बचने के लिए भगवान वरुणदेव से प्रार्थना की और पूजा पाठ, जप, व्रत आदि किए। इसके बाद उन्हें मछली पर सवार एक अद्भुत आकृति दिखाई दी। इसके बाद आकाशवाणी हुई कि, मानवता की रक्षा के लिए मैं 7 दिन बाद श्रीरतनराय के घर में माता देवकी की कोख से जन्म लूंगा।

इसके बाद वरुण देवता ने संत झूलेलाल के रूप में जन्म लिया और सिंधी लोगों को दमनकारी शासक से लोगों को बचाया। इसलिए विशेष दिन पर भगवान झूलेलाल की पूजा की जाती है। जब इस बात का पता मिरखशाह को चला तो उसने इस बालक के मारने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाया। बड़े होकर इस युवक ने एक वीर सेना तैयार की और मिरखशाह को हरा दिया। ऐसा कहा जाता है कि, झूलेलाल की शरण में आने के कारण मिरखशाह बच गया। वहीं भगवान झूलेलाल संवत् 1020 भाद्रपद की शुक्ल चतुर्दशी के दिन अन्तर्धान हो गए। तभी से उनकी स्मृति में ये पर्व मनाया जाने लगा।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

Created On :   9 April 2024 7:26 AM GMT

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