जानें इस दिन का महत्व और पौराणिक कथा के बारे में

Bhishma Ashtami 2023: know about importance and mythology of this day
जानें इस दिन का महत्व और पौराणिक कथा के बारे में
भीष्म अष्टमी 2023 जानें इस दिन का महत्व और पौराणिक कथा के बारे में

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर साल माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्मष्टमी के रुप में मनाया जाता है। इस बार भीष्म अष्टमी 28 जनवरी शनिवार को मनाई जा रही है। कहा जाता है कि इसी दिन इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त करने वाले गंगा पूत्र पितामाह भीष्म की मृत्यु हुई अर्थात् इसी दिन पितामाह भीष्म ने अपने देह का त्यागा किया था। इसलिए हर वर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को तिथि को उनके निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मान्यता है कि इस दिन व्रत और अनुष्ठान करने से संस्कारी संतान की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं भीष्म अष्टमी का महत्व इससे जुड़ी पौराणिक कथा...

भीष्म अष्टमी का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार पिता के प्रति दृढ़ भक्ति और निष्ठा के कारण, भीष्म पितामह को अपनी मृत्यु का समय चुनने की शक्ति प्रदान की गई। जब वह महाभारत के महान युद्ध के दौरान घायल हो गए, तो उन्होंने अपना शरीर नहीं छोड़ा और सर्वोच्च आत्मा से मिलने के लिए माघ शुक्ल अष्टमी के शुभ दिन की प्रतीक्षा की। हिंदू धर्म में, यह वह समय है जब सूर्य देव दक्षिण दिशा में चलते हैं इसे अशुभ माना जाता है और जब तक सूर्य देव उत्तरी दिशा में वापस नहीं चले जाते, तब तक सभी मुहुर्त कार्यों को स्थगित कर दिया जाता है। माघ महीने की अष्टमी के दौरान, इस उत्तरी आंदोलन को 'उत्तरायण' काल के रूप में जाना जाता है।

भीष्म अष्टमी के पूरे दिन किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए अनुकूल माना जाता है। भीष्म अष्टमी का दिन निसंतान दम्पतियों के लिए 'निसंतान दोष' से छुटकारा पाने के लिए भी महत्वपूर्ण है। निःसंतान दंपति व नवविवाहित जोड़े भी इस दिन एक कठोर व्रत का पालन करते हैं, ताकि जल्द ही एक संतान का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भीष्म पितामह का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, संतान की प्राप्ति होगी।

पौराणिक कथा
भीष्म अष्टमी हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार  है। महाभारत काल से जुड़ी कथा के अनुसार भीष्म राजा शांतनु और देवी गंगा के सबसे छोटे पुत्र थे। भीष्म के जन्म का नाम देवव्रत था। जैसे-जैसे वह बड़े हुए, गंगा उसे अपने साथ जरूरत के सभी कौशल सिखाने के लिए दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास ले गई। आखिरकार, उन्होंने लड़ने की अतुलनीय कला सीखी, जिसके कारण उन्होंने कभी भी हार न मानने का अनूठा गौरव अर्जित किया, जब तक कि वे युद्ध के मैदान में युद्ध कर रहे थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया, राजा शांतनु ने सुंदरता से मुग्ध होकर सत्यवती से विवाह कर लिया।

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, गंगा केवल इस शर्त पर शांतनु से शादी करने के लिए सहमत हुई कि वह जो भी करेगी, उसके लिए शांतनु कभी भी उससे कोई सवाल नहीं करेंगे। इस वचन के बाद गंगा शांतनु के सात बच्चों की माता बनी, गंगा ने सभी सातों बच्चों को जन्म के तुरंत बाद गंगा में प्रवाहित कर दिया। यह सब देख राजा शांतनु परेशान हो गए। संतान की अकाल मृत्यु से पीड़ित होकर शांतनु गंगा से प्रश्न पूछते है कि वह इतने निर्मम तरीके से उन्हें क्यों डुबो रही है। यहाँ शांतनु गंगा को दिया अपना वचन भंग करते है। जिसका विरोध करते हुए गंगा अपने आठवें पुत्र भीष्म को शांतनु को सौंप कर चली गयी। यही भीष्म बड़े होकर भीष्म पितामह के नाम से जाने गए। भीष्म के प्राण त्यागने की तिथि भीष्म अष्टमी के रूप में जानी जाती है।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

Created On :   28 Jan 2023 2:57 PM GMT

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