राशि बदलाव: गुरू का अतिचार दुनिया होगी लाचार

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राशि बदलाव: गुरू का अतिचार दुनिया होगी लाचार
राशि बदलाव: गुरू का अतिचार दुनिया होगी लाचार

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 5 अप्रैल 2021 यानी कि कल  बृहस्पति मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। ज्योतिषीय भाषा में इसे गुरू का अतिचार कहते हैं। गुरू ग्रह जब- जब अतिचार करते हैं तब तब विश्व में हाहाकार मचाकर उसे लाचार बना देते हैं। ज्योतिषियों के साथ- साथ आमजन की निगाह लगी है कि ये अतिचार भी पिछले वर्ष की भांति ही परिणाम न दे। 

इन दिनों लगभग समाप्त हो चुके कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों ने भी इस आशंका को बढ़ा दिया है। ज्योतिष का सूत्र कहता है ‘‘अतिचारे गते सौम्ये ’’ यानि सौम्य ग्रह बुध , गुरू ये यदि अतिचार करते हैं तो ‘‘ हाहाभूतं जगत्सर्वं रूंडमुंड च जायते ’’  यानि संसार में हाहाकार मचाते हैं, भारी मात्रा में जनहानि करवाते हैं।

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विश्व के लिए कष्टप्रद
अतिचारी होकर जब कोई ग्रह परिवर्तन करता है, उसका प्रभाव दोगना प्राप्त होता है। इस प्रकार से 5 अप्रैल से 14 सितंबर तक का समय भारत के साथ ही संपूर्ण विश्व के लिए कष्टप्रद कह सकते हैं। 

लगातार तिसरे वर्ष अतिचार 
बृहस्पति आमतौर पर तेरह महिने में एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन करते हैं। लेकिन 2019 से लगातार तीसरे वर्ष गुरू महाराज अतिचार कर रहें हैं। 2019, 2020 और अब 2021।

2019 में जब 26 दिन के लिए गुरू अतिचारी हुए, वृश्चिक से धनु में आए तब देश में लोकसभा चुनाव का दौर था। उन 26 दिनों में लोकसभा की लगभग 303 सीटों पर चुनाव हो रहे थे। वृश्चिक राशि और वृश्चिक लग्न वाले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में धनु राशि में बृहस्पति के अतिचार ने एक पूर्ण बहुमत की सरकार बनवायी।

2020 में यानि पिछले साल गुरू महाराज एक बार फिर से अतिचारी हुए। 29 मार्च 2020 से 29 जून 2020 तक 3 माह के लिए। लेकिन इस बार बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर राशि में अतिचार कर आए। जिससे देश ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में एक महाभंयकर महामारी कोरोना का प्रकोप देखने में आया। जिससे संपूर्ण विश्व त्राहिमाम कर रहा था। यहां तक की अमेरिका जैसा सामर्थ्यवान जिसके पास तकनीक, सुरक्षा, संपत्ती सब था वो भी इस महामारी के आगे असहाय नजर आया।

अब 2021 में लगातार तीसरी बार गुरू अतिचार कर रहे हैं। मकर राशि में गुरू नवंबर 2020 को आए थे, करीब साढ़े चार माह बाद ही वे मकर से कुंभ राशि में 5 अप्रैल की रात प्रवेश करेंगे। कुंभ राशि में लगभग सवा पांच माह यानि 14 सितंबर तक रहेंगे। पिछले वर्ष के अनुभवों के कारण इस बार भी ये अंतराल संपूर्ण विश्व को परेशान और लाचार करेगा। महामारी, युध्द, धार्मिक उन्माद, सत्ता संघर्ष, प्राकृतिक आपदा आदि के योग बनेंगे।

गुरू 5 अप्रैल से अतिचार होकर 20 जुन तक ‘‘ 8 ’’ डिग्री तक मार्गी रहेंगे। 20 जून से गुरू की चाल वक्री हो जाएगी 20 जून 14 सितंबर तक वक्री ही रहेंगे। ये अच्छी बात है कि इस अंतराल में गुरू की युति किसी क्रूर ग्रह शनि या केतु के साथ नहीं होगी। जैसे पिछली 2 बार से थी। लेकिन फिर भी शनि मकर राशि में ही 23 मई 2021 से 11 अक्टूबर तक वक्री रहेंगे। ज्योतिष के नियम के अनुसार  ‘‘कू्ररे वक्रत्वं आगते ’’ यानि क्रूर ग्रह वक्री होकर बलवान बन जाता है, इस कारण शनि भी गुरू की ही तरह परेशानी बढ़ाने का कार्य करेंगे। 

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गुरू के राशि परिवर्तन का भारत पर असर 
स्वतंत्र भारत की कुंडली, ये वृषभ लग्न और कर्क राशि की है। फिलहाल उसमें चंद्र की महादशा में शनि का अंतर ये जुलाई तक है। जुलाई के बाद बुध का अंतर प्रारंभ होगा जो कि दिसंबर 2022 तक रहेगा। बृहस्पति लग्न से षष्टम भाव में तथा राहू लग्न तथा केतु सप्तम में है। जुलाई से लगभग डेढ़ साल भारत के लिए रोग, महामारी, प्राकृतिक आपदा आदि के और रह सकते हैं लेकिन मान सम्मान और रूतबा भी लगातार बढ़ता रहेगा।

पीएम नरेन्द्र मोदी की कुंडली में गुरू की स्थिती 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कुंडली वृश्चिक लग्न और वृश्चिक राशि की है। चंद्रमा की महादशा में शुक्र का अंतर प्रारंभ है जो कि 29 मई 2021 तक है। बृहस्पति धनेश तथा पंचमेश होकर कुंभ राशि में चतुर्थ भाव में वक्री अवस्था में स्थित है। गोचर में कुंभ राशि में ही गुरू चतुर्थ में आ रहा है। 5 अप्रैल से 14 सिंतबर तक राजनैतिक रूप से तो बढ़िया रहेगा, विरोधी परास्त होंगे। लेकिन स्वयं के स्वास्थ्य और विशेष तौर पर मां हीराबेन के स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है।

12 राशियों के लिए असर 
मेष:- सुख, धन आगमन होगा       
वृषभ:- अज्ञात भय, धन सामान्य        
मिथुन:- लाभ, प्रतिष्ठा वृध्दि  
कर्क:- कलह, विवाद की स्थिती 
सिंह:- व्यापार वृद्धि, प्राप्तियां अच्छी 
कन्या:- रोग , शत्रु वृध्दि 
तुला:- हर्ष, सुख प्राप्ति
वृश्चिक:- धन हानि, कष्ट
धनु:- चिंता, व्यय 
मकर:- धन लाभ, सम्मान 
कुंभ:- शारीरिक कष्ट, पीड़ा
मीन: व्यय , कष्ट 

लेकिन यदि जन्म कुंडली में गुरू शुभ स्थान में और बलवान हो तो अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं। 
उपाय- 

-आचरण सात्विक रखें 
- देवता, गुरू, संत, ब्राम्हण का सत्कार करें, उनका निरादर न करें 
- हर गुरूवार कुछ पीली वस्तु का दान किसी मंदिर में अथवा ब्राम्हण को करें 
- एकाक्षरी मंत्र: बृं बृहस्पतये नमः की माला प्रतिदिन या गुरूवार को जपें 
- किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली परीक्षण करा कर पुखराज पहनें 
इस प्रकार गुरू महाराज का ये अतिचार सावधानी और सतर्कता की ओर ईशारा कर रहा है। 

पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला

Created On :   4 April 2021 12:04 PM GMT

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