यहां लगता है भूतों का मेला, 100 पुरानी है परंपरा

यहां लगता है भूतों का मेला, 100 पुरानी है परंपरा

डिजिटल डेस्क, खरगापुर/टीकमगढ़। मेला शब्द से सभी वाकिफ हैं। सभी जानते हैं कि मेले में कई तरह की चीजें मिलती हैं। बच्चे झूले-झूलते। सबसे ज्यादा मेला अगर कोई एंजॉय करता है तो वो हैं बच्चे, लेकिन मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में एक ऐसा मेला लगता है, जिसे शायद बच्चे तो क्या कोई बड़ा भी एन्जॉय ना कर सके। दरअसल टीकमगढ़ के खरगापुर के गोरा गांव में भूतों का मेला लगता है। भूतों का मेला देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति को भूत लगे हुए होते हैं, तो उसके तमाम कष्ट यहां आकर दूर हो जाते हैं। मान्यता ऐसी है कि यहां न केवल मप्र के लोग आते बल्कि, यूपी और छत्तीसगढ़ से भी लोग अपनी-अपनी परेशानियों से निजाद पाने यहां पहुंचते हैं।


हर साल की तरह इस बार भी गोरा गांव में भूतों का मेला लगाया गया। दशहरा से आयोजित तीन दिवसीय मेला रविवार को संपन्न किया गया। ऐसी मान्यता है कि भगवान के भजन गाकर यहां लोगों को प्रेत आत्माओं से छुटकारा दिलाया जाता है। मेले में एमपी के साथ ही यूपी, छत्तीसगढ़ से हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए। खरगापुर तहसील अंतर्गत गुना-गोरा गांव में बरगद के पेड़ के नीचे नृसिंह भगवान का प्राचीन मंदिर है। नजदीक ही सूर्य भगवान को मंदिर है। जहां दशहरा पर प्रतिवर्ष तीन दिवसीय मेला लगाया जाता है। क्षेत्र सहित अन्य राज्यों में भी यह मेला भूतों का मेला कहा जाता है, जिसका कारण मेला को लेकर लोगों की मान्यता है। कहा जाता है कि मेला में भूत भगाए जाते हैं, यानी लोगों को प्रेत आत्माओं के कष्ट से छुटकारा दिलाया जाता है। सूर्य मंदिर के पुजारी जगदीश रिछारिया ने बताया कि गांव में मेला लगाने की यह परंपरा 100 साल से भी पुरानी बताई जाती है। उन्होंने बताया कि प्रेत आत्माओं से पीड़ित व्यक्ति यहां भगवान के भजन सुनकर भाव खेलने लगता है। आखिर में पीड़ित व्यक्ति को प्रेत आत्मा के प्रकोप से छुटकारा मिल जाता है।

 

भजन सुनकर बढ़ जाता है पीड़ितों का कष्ट


मान्यता है कि भगवान के पूजन के दौरान भजन गायन शुरू होते ही प्रेत आत्माओं से पीड़ित व्यक्ति भाव खेलने लगता है। इसके साथ ही पीड़ितों को शारीरिक यातनाओं का सामना करना पड़ता है। गुना निवासी काशीराम रैकवार ने बताया कि भजनों के दौरान पीड़ित व्यक्ति का कष्ट कई गुना बढ़ जाता है, लेकिन इसके बाद प्रेत से छुटकारा मिल जाता है। दिन में जिन लोगों को राहत नहीं मिलती, उनके लिए रात के समय भजन-पूजन किया जाता है।

 

नृसिंह और सूर्य मंदिर पर लगता है मेला

गोरा गांव निवासी रतन सिंह ठाकुर के अनुसार बहुत पहले नृसिंह भगवान गांव के पास पहाड़ी पर विराजमान थे। कहा जाता है कि जतारा निवासी सरमन बनिया द्वारा नरसिंह भगवान की प्रतिमा पहाड़ी से लाकर गांव में बरगद पेड़ के नीचे स्थित सूर्य मंदिर के पास स्थापित की गई थी, तभी से गांव में मेला लगाने की शुरुआत की गई। भजन-पूजन के दौरान प्रेत आत्माओं से लोगों को छुटकारा मिलने के कारण इसे भूतों का मेला कहा जाने लगा। उन्होंने बताया कि टीकमगढ़ जिला ही नहीं मप्र के साथ ही अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग मेले में शामिल होने पहुंचते हैं।

 

छग में मेले की अधिक मान्यता, दुर्ग-बिलासपुर से पहुंचे लोग

गोरा गांव में लगने वाला भूतों का मेला क्षेत्र ही नहीं दूर-दूर अन्य राज्यों तक विख्यात है। ये हम नहीं कहते, बल्कि मेले में यूपी, छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों से पहुंचे लोगों का यही कहना था। तीन दिनी मेले में हजारों लोगों की भीड़ गोरा गांव में जुटी। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से आए सुरेंद्र उइके और बिलासपुर से जीवन लाल चंदेल ने बताया कि गोरा में लगने वाले भूतों के मेले की छत्तीसगढ़ में बहुत मान्यता है। लोगों से जानकारी मिलने पर ही हम लोग यहां पहुंचे हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के ललितपुर। जिला अंतर्गत बानपुर से देना बाई अपने परिजनों के साथ मेले में पहुंची। देवेंद्र रावत निवाड़ी, पप्पू लाल कुशवाहा जटाशंकर जिला छतरपुर भी भूतों के मेला में प्रेतबाधा से छुटकारा पाने पहुंचे।

Created On :   22 Oct 2018 7:27 AM GMT

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