कुंभ संबंध समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से, जानिए कैसे?

Kumbh is related to nectar emanating from sea churn, know how?
कुंभ संबंध समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से, जानिए कैसे?
कुंभ संबंध समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से, जानिए कैसे?

डिजिटल डेस्क ।अर्धकुंभ 2019 का पहला शाही स्नान वैसे तो 15 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर होगा, लेकिन कुंभ नगरी की दिव्यता-भव्यता की आभा में दूर दराज से आ रहे श्रद्धालुओं ने पुण्य की डुबकी अभी से लगानी शुरू कर दी है। कल्पवासी तो अभी नहीं आए हैं, लेकिन जो पुण्य की डुबकी लगा रहे हैं, उन्हें किसी विशेष घड़ी और मुहूर्त की प्रतीक्षा नहीं। उनके लिए तो त्रिवेणी के पवित्र तट पर जब स्नान का अवसर मिल जाए, वही घड़ी विशेष और वही समय विशिष्ट मुहूर्त है। बहुत कम लोगों को जानकारी होगी की कुंभ का संबंध समुद्र मंथन से निकले अमृत और उस कलश से है जिसमें अमृत था। ये शायद नई पीढ़ी को पता ही नहीं होगा। इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कि कुंभ और अमृत संबंध कैसे है?

 

चार स्थानों पर गिरी अमृत की बूंदे
कलश को कुंभ कहा जाता है। कुंभ का अर्थ होता है घड़ा। इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से जुड़ा है।देवता-असुर जब अमृत कलश को एक दूसरे से छीना-झपटी कर रहे थे तब कलश से कुछ बूंदें धरती के चार स्थानों पर गिरी थीं। जहां जब ये बूंदें गिरी थी उस स्थान पर तब कुंभ का आयोजन होता है। उन चार स्थानों के नाम है- 1.प्रयागराज (इलाहाबाद) 2.हरिद्वार 3.उज्जैन 4.नासिक।

 

अमृत के लिए बारह दिन तक युद्ध
अमृत पर अधिकार को लेकर देवता और दानवों के बीच लगातार बारह दिन तक युद्ध चला। जो धरती के बारह वर्ष के समान होता हैं। इसलिए कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और आठ कुंभ देवलोक में होते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार कुंभ मेले का सीधा सम्बन्ध ग्रहों से है। अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में भगवान जयंत को 12 दिन लगे। देवलोक का एक दिन धरती के 1 वर्ष के बराबर होता है। इसीलिए ग्रहों के क्रम के अनुसार हर 12वें वर्ष कुंभ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित किया जाता है।

 

सूर्य, चंद्र, और गुरु आदि ग्रहों ने कलश की रक्षा की
देव-दानव युद्ध के समय सूर्य, चंद्र, और गुरु आदि ग्रहों ने कलश की रक्षा की थी, अतः उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले गुरु,चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब होते हैं, तब कुंभ का योग बनता है और चारों पवित्र स्थलों पर क्रमानुसार कुंभ मेले का आयोजन होता है। अर्थात अमृत की बूंदे गिरते समय जिस राशियों में सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति की स्थिति के विशिष्ट योग बनते हैं, वहां कुंभ मैले का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा विशेष सुरक्षाकर्मी रहे थे। इसी कारण इन्हीं गृहों के उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाया जाता है।

 

नदियों में भी गिरा अमृत 
अमृत की ये बूंदें चार स्थान और नदी पर गिरी थी वो हैं गंगा नदी में प्रयाग और हरिद्वार, गोदावरी नदी नासिक और उज्जैन में  क्षिप्रा नदी। इन सभी नदियों का संबंध गंगा से है। गोदावरी को गोमती गंगा के नाम से पुकारा जाता हैं। क्षिप्रा नदी को भी उत्तरी गंगा के नाम से पुकारा जाता हैं, इन सभी स्थानों पर शिवजी की आराधना की जाती है। ब्रह्म पुराण एवं स्कंध पुराण के 2 श्लोकों के माध्यम इसे समझा जा सकता है।

!!विन्ध्यस्य दक्षिणे गंगा गौतमी सा निगद्यते उत्त्रे सापि विन्ध्यस्य भगीरत्यभिधीयते!!
!!एव मुक्त्वाद गता गंगा कलया वन संस्थिता गंगेश्वेरं तु यः पश्येत स्नात्वा शिप्राम्भासि प्रिये!!

Created On :   11 Jan 2019 4:34 AM GMT

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