किस पितृ का श्राद्ध कब, क्यों और कैसे करें ? 

किस पितृ का श्राद्ध कब, क्यों और कैसे करें ? 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि हमारे पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 16 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद पितृलोक को लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के समय काल में पितृ अपने परिवारजनों के आस-पास ही रहते हैं इसलिए इन दिनों में कोई भी ऐसा काम नहीं करें जिस कारण से पितृदेव रुष्ठ हों। पितृ को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं। जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं।

पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए। हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए। मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए।

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। इस पक्ष में जो लोग अपने पितृ को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर उनका श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती है उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं।

आश्विन मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा  

इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो इस दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है।

पंचमी तिथि  

जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जा सकता है।

नवमी तिथि  

सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिस स्त्री की मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जा सकता है। नवमी तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।

एकादशी और द्वादशी तिथि  

एकादशी तिथि में वैष्णव सन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।

चतुर्दशी तिथि  

चतुर्दशी तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है। जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने का विधान बताया गया है।

सर्वपितृमोक्ष अमावस्या  

किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध कर दिया जाता है।

यही नहीं जिनका मृत्यु पर जो संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी इस अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करने का विधान है। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए, यही उचित भी है। 

Created On :   1 Oct 2018 11:55 AM GMT

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