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यूपी बार्डर के बीहड़ में चलती थी हीरे की अवैध खदानें, पुलिस ने लगाई लगाम
डिजिटल डेस्क, सतना। बरौंधा वन परिक्षेत्र के अंतर्गत सतना-पन्ना जिलों और यूपी के वार्डर पर 40 से भी अधिक वर्षों से चलने वाली हीरे की अवैध खदानें बंद कर माफिया पर लगाम लगाने में पुलिस सफल हुई है। सेहा जंगल इस कदर दुर्गम है कि यहां 10 से 15 किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद ही खदानों तक पहुंचा जा सकता है। यहां पन्ना-छतरपुर तथा उत्तरप्रदेश के कुछ शातिर व जिला बदर अपराधी फरारी भी काटते थे तथा वहीं अवैध खदानों का संचालन भी करते थे।
जानकार बताते हैं कि इस वर्ष भी हीरे के काले कारोबार को बारिश के तुरंत बाद पिछले सालों की तरह शुरू करने के लिए हाथ पैर चलाए गए किन्तु माफिया कामयाब नहीं हो सके। यह भी पता चला कि अभी भी इस दिशा में प्रयास चल रहा है। किन्तु इन अवैध खदानों में काम करने के लिए कोई मजदूर तैयार नहीं हो रहे।
यह है असली वजह
लोग बताते हैं कि हीरे की लगभग दो से ढाई सौ अवैध खदानें सेहा नदी की तलहटी से लेकर उसके किनारों तक संचालित की जाती थीं। यहां तकरीबन डेढ़ हजार श्रमिक हीरा खोदने का काम करते थे। एक-एक दिन में दर्जनों छोटे-बड़े हीरे भी निकलते थे। सेहा नदी की दहारों में धुलाई के लिए पानी भी मिल जाता था। जानकारी के मुताबिक बीते साल गर्मी के दिनों में यहां परिवार के साथ आई एक युवती के साथ सामूहिक ज्यादती के बाद उसका मर्डर कर दिया गया। बाहर से आए श्रमिकों को रिपोर्ट तक नहीं दर्ज कराने दी गई। वह जान बचाकर भाग निकले और अब इस घटना की खबर फैलने पर कोई मजदूर यहां काम करने को तैयार नहीं। दूसरी वजह यह भी है कि मेहनत के अनुरूप मजदूरी भी नहीं मिल पाती। कई बाहुबली ठेकेदार मजदूरों की मजदूरी भी मार देते हैं, इसी वजह से श्रमिकों का मोह टूट गया और खदानें बंद हैं।
मुंबई से भी आते थे व्यापारी
सेहा के बीहड़ में लगने वाली हीरा खदानों का कारोबार पूरी तरह से नाजायज होता था, लेकिन यहां काफी मात्रा में हीरे मिलते थे, इसकी जानकारी दूर-दूर तक कारोबारियों को थी। यहां निकलने वाले कच्चे हीरों की तलाश में मुम्बई तक के हीरा व्यापारी आते थे तथा खदानें चलवाने वालों से हीरे खरीदकर ले जाते थे। इसके अलावा कई एजेंट भी हीरों को बिकवाने के लिए दलाली करते थे। इस वर्ष यह सभी छटपटा रहे हैं और स्थानीय श्रमिकों को इसके लिए राजी करने के प्रयास में जुटे हैं।
Created On :   18 Feb 2019 7:58 AM GMT