CBI के इन 2 जांबाज अफसरों ने बाबा को महल से जेल तक पहुंचाया

Two courageous CBI officers fight against gurmeet ram rahim
CBI के इन 2 जांबाज अफसरों ने बाबा को महल से जेल तक पहुंचाया
CBI के इन 2 जांबाज अफसरों ने बाबा को महल से जेल तक पहुंचाया

डिजिटल डेस्क, हिसार। दो युवतियों के रेप के मामलें में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम की हकीकत सामने लाने और उसे सजा दिलाने में CBI के दो जांबाज अफसरों ने अहम भूमिका निभाई। उनके नाम हैं सतीश डागर और तत्कालीन DIG मुलिंजा नारायणन। इन दोनों अधिकारियों ने युवतियों को न्याय दिलाने के लिए न केवल अपने उच्च अधिकारियों के दबाव झेले, बल्कि अपनी जान दांव पर लगाकर पूरे मामले की निष्पक्षता से जांच की।

डागर ने साध्वियों को खोजा

"पूरा सच" नाम का अखबार निकालने वाले पत्रकार रामचंदर छत्रपति ने युवतियों पर हुए रेप को उजागर किया था। छत्रपति ने डेरे का पूरा सच और एक गुमनाम पत्र अपने अखबार में छापा था, जिसमें साध्वियों के साथ रेप की बात लिखी गई थी। खबर छपने के कुछ दिन बाद ही छत्रपति पर हमला हुआ, जिसमें उनकी मौत हो गई। कुछ समय बाद एक युवती के भाई रंजीत की भी हत्या कर दी गई, जो कि डेरे में सेवक थे। कहीं उनकी भी हत्या न हो जाए, इस डर से युवतियां सामने तक नहीं आ रही थीं।

इसके अलावा लेटर के आधार पर मामले की जांच करना इतना आसान नहीं था। लेटर की जांच के दौरान पता चला कि यह पंजाब के होशियारपुर से आया है, लेकिन इसे किसने भेजा है, यह पता नहीं चल रहा था। नारायणन ने बताया, "मुझे पीड़िता के परिवार के लोगों को मैजिस्ट्रेट के सामने बयान देने के लिए समझाना पड़ा, क्योंकि पीड़िता और उसके परिवार के लोगों को डेरा की ओर से धमकी मिल रही थी।" ऐसे में CBI अफसर सतीश डागर ने न केवल उन गुमनाम युवतियों को खोजा, बल्कि उन्हें बयान दर्ज कराने के लिए भी प्रेरित किया।  

अगर डागर नहीं होते तो कभी इंसाफ न मिलता

मृत पत्रकार रामचंदर छत्रपति के बेटे अंशुल ने सतीश डागर के साहस की तारीफ करते हुए कहा कि, "सतीश डागर पर अधिकारियों और नेताओं का दबाव था। डेरा समर्थकों की ओर से उन्हें धमकी भी मिल रही थी, लेकिन डागर ने कमाल का साहस दिखाया और केस को अंजाम तक पहुंचाने में सफल रहे।" उन्होंने बताया कि अगर सतीश डागर नहीं होते तो उन्हें कभी इंसाफ नहीं मिल पाता और यह मामला कभी अंजाम तक न पहुंचता। सतीश ने ही पीड़ित साध्वी को खोज निकाला और उसे बयान दर्ज कराने के लिए तैयार किया। इसके बाद भी लड़कियों को कई तरह के दबाव का सामना करना पड़ा।

अधिकारियों ने बंद करने को कहा था केस

 CBI के तत्कालीन DIG मुलिंजा नारायणन ने बताया कि जिस दिन उन्हें केस सौंपा गया था, उसी दिन उनके वरिष्ठ अधिकारी उनके कमरे में आए और साफ कहा कि यह केस तुम्हें जांच करने के लिए नहीं, बंद करने के लिए सौंपा गया है। मुलिंजा पर केस को बंद करने के लिए काफी दबाव था, लेकिन उन्होंने बिना किसी डर के मामले की जांच की और इस केस को आखिरी अंजाम तक पहुंचाया।

मुलिंजा ने अधिकारियों की बात मानने से कर दिया था मना

मुलिंजा ने बताया कि उन्हें यह केस कोर्ट ने सौंपा था इसलिए झुकने का कोई सवाल ही था। CBI ने इस मामले में 2002 में एफआईआर दर्ज की थी। मुलिंजा ने कहा, "पांच साल तक मामले में कुछ नहीं हुआ तो कोर्ट ने केस ऐसे अधिकारी को सौंपने को कहा, जो किसी अफसर या नेता के दबाव में न आए। जब केस मेरे पास आया, तो मैंने अपने अधिकारियों से कह दिया कि मैं उनकी बात नहीं मानूंगा और केस की तह तक जाऊंगा। बड़े नेताओं और हरियाणा के सांसदों तक ने मुझे फोन कर केस बंद करने के लिए कहा। लेकिन मैं नहीं झुका।"

डेरा समर्थकों से मिलती थी धमकी

मुलिंजा को डेरा समर्थकों की ओर से भी लगातार धमकी मिल रही थी। उन्हें केस को बंद करने के लिए धमकियां मिलती थी। डेरा समर्थक जांच बदलने या बंद करने की लगातार धमकी देते थे।

Created On :   27 Aug 2017 3:15 PM GMT

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