क्या महत्व है ज्येष्ठ की वट सावित्री पूर्णिमा का 

Vat Purnima Vrat 2018: Vat Savitri Purnima Vrat Katha, Puja Vidhi and Significance
क्या महत्व है ज्येष्ठ की वट सावित्री पूर्णिमा का 
क्या महत्व है ज्येष्ठ की वट सावित्री पूर्णिमा का 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। जिसे सौभाग्य और संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। वट सावित्री व्रत स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और संतान के कुशल भविष्य के लिए रखती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को किया जाता है। इस बार अधिक मास होने के कारण दो वट सावित्री पूर्णिमा हुई। दूसरी वट सावित्री पूर्णिमा 27 जून 2018 को है। 

सौभाग्यवती महिलाओं का पावन पर्व 

वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की पूजा-अर्चना करने का विधान है। महिलाएं अपने अखंड सुहाग की रक्षा हेतु वट वृक्ष की पूजा और व्रत करती हैं तथा नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करके वटवृक्ष की पूजा के बाद ही जल ग्रहण करती हैं।

 


वट सावित्री पूजन विधि : 

  • इस पूजन में महिलाएं चौबीस बरगद के फल (आटे या गुड़ के) और चौबीस पूरियां अपने आंचल में रखकर बारह पूरी अपने परिवार को खिलाती हैं खासकर परिवार के पुरुषों को और बारह बरगद वट वृक्ष में चढ़ा देती हैं। 
  • वृक्ष में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करती हैं। 
  • कच्चे सूत को हाथ में लेकर वृक्ष की बारह परिक्रमा करती हैं। 
  • हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं और सूत तने पर लपेटती जाती हैं। 
  • परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं। 
  • फिर बारह तार (धागा) वाली एक माला को वृक्ष पर चढ़ाती हैं और एक को गले में डालती हैं। 
  • छः बार माला को वृक्ष से बदलती हैं, बाद में एक माला चढ़ी रहने देती हैं और एक पहन लेती हैं। 
  • जब पूजा समाप्त हो जाती है तब महिलाएं ग्यारह चने व वृक्ष की बौड़ी (वृक्ष की लाल रंग की कली) तोड़कर जल से निगलती हैं। इस तरह व्रत समाप्त करती हैं।

 


वैसे तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व माना जाता है लेकिन ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तो और भी पावन मानी जाती है। धार्मिक तौर पर पूर्णिमा को स्नान दान का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान के पश्चात पूजा-अर्चना कर दान दक्षिणा देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कुछ क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। जो कि वट सावित्री व्रत के समान ही होता है। कुछ पौराणिक ग्रंथों (स्कंद पुराण व भविष्योत्तर पुराण) के अनुसार तो वट सावित्रि व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को रखा जाता है। गुजरात, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में विशेष रूप से महिलाएं ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट सावित्रि व्रत रखती हैं। उत्तर भारत में यह ज्येष्ठ अमावस्या को रखा जाता है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा का स्नान-दान आदि के लिए तो महत्व है ही साथ ही यह पूर्णिमा एक खास बात के लिए और जानी जाती है। दरअसल भगवान भोलेनाथ के नाथ अमरनाथ की यात्रा के लिए गंगाजल लेकर आज के दिन ही शुरुआत करते हैं।

सावित्री की पूजा कर वट वृक्ष के सात चक्कर लगाते हुए मौली के धागे से बांधती हैं। इसके पश्चात व्रत कथा सुनते हैं। इसके पश्चात किसी योग्य ब्राह्मण या फिर किसी गरीब जरूरतमंद को श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा दी जाती है। प्रसाद के रूप में चने व गुड़ का वितरण किया जाता है।

Created On :   26 Jun 2018 9:25 AM GMT

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